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Wednesday, November 19, 2014

जब से सुना, द्वार तुम मेरे आओगे



जब से सुना, द्वार तुम मेरे आओगे,
नई - नई नित बंदनवार बंधाती हूं!

प्राण! तुम्हारे स्वागत में द्वार, देहरी,
अंगना देखो, सारा सदन बुहारा है
कोमल हैं प्रिय चरण तुम्हारे इसीलिए
पंखुरियों से सारा पंथ संवारा है
जब से सुना, सहन तक तुम आ जाओगे,
चौक पूरती, मंगल - कलश भराती हूं।
जब से सुना, द्वार तुम मेरे आओगे,
नई - नई नित बंदनवार बंधाती हूं!

वीराना - सा जीवन समझा था मैंने,
सोचा, कोई भी तो मेरा मीत नहीं है
अनजाने अधरों पर सहसा आ जाये,
ऐसा कोई भी तो मेरा गीत नहीं है
जब से सुना, गीत तुम मेरे गाओगे,
नये - नये नित छंद बनाकर लाती हूं!
जब से सुना, द्वार तुम मेरे आओगे,
नई - नई नित बंदनवार बंधाती हूं!

इन नयनों में नये सपन का मेला है,
सतरंगी ये चाह हृदय में मुसकाती
कैसे काटू पंख कल्पना के सुंदर,
मन की सोन - चिरैया देखो अकुलाती
जब से सुना प्राण पर मेरे छाओगे,
नये - नये नित मादक सपन सजाती हूं!
जब से सुना द्वार तुम मेरे आओगे,
नई - नई नित बंदनवार बंधाती हूं!

चौराहे पर खड़ी हुई हूं सोच यही,
पता नहीं तुम किस पथ पर होकर आओ;
मैं दीवानी बनी तुम्हारी, जग कहता,
सांवरिया इस पागलपन को दुलराओ,
जब से सुना अजाना पथ अपनाओगे,
डगर - डगर पर दीपक रोज जलाती हूं!
जब से सुना, द्वार पर मेरे आओगे,
नई - नई नित बंदनवार बंधाती हूं!

~ गोरख नाथ

September 4, 2014

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