हाँ! चुनाव तुम्हारा है
आते है गंदले कीचड़े उथले नारे नदी
मिलते है गंगा में और गंगा हो जाते हैं
पर गंगा बन मिलते है जब सागर में
गंगा के नामो निशाँ मिट जाते हैं
बरगद के नीचे जो उगोगे
तो बढ़ नहीं पाओगे
सुरक्षित तो रह लोगे
संवर नहीं पाओगे
आंधी तूफ़ान से भी बचोगे ज़रूर
पर फल फूल नहीं पाओगे
न शाखा को मिलेगा आसमान
न जड़ को ज़मीं दे पाओगे
अब चुनाव तुम्हारा है
या आंधी तूफानों को झेलो
अपनी ज़मीं अपना आसमान बनाओ
या केकड़े बन सिमटते रहो सहते रहो
जैसे हो तैसे बस चमड़ी बचाओ
चुनाव तुम्हारा है
~ अमिता तिवारी
Jun 5, 2013
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