तुम रजनी के चाँद बनोगे?
या दिन के मार्त्तण्ड प्रखर?
एक बात है मुझे पूछनी,
फूल बनोगे या पत्थर?
तेल, फुलेल, क्रीम, कंघी से
नकली रूप सजाओगे?
या असली सौन्दर्य लहू का
आनन पर चमकाओगे?
पुष्ट देह, बलवान भुजाएँ,
रूखा चेहरा, लाल मगर,
यह लोगे? या लोगे पिचके
गाल, सँवारी माँग सुघर ?
जीवन का वन नहीं सजा
जाता कागज के फूलों से,
अच्छा है, दो पाट इसे
जीवित बलवान बबूलों से।
चाहे जितना घाट सजाओ,
लेकिन, पानी मरा हुआ,
कभी नहीं होगा निर्झर-सा
स्वस्थ और गति-भरा हुआ।
~ रामधारी सिंह 'दिनकर'
Jun 5, 2013
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