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Wednesday, November 19, 2014

चांदनी रातें...!


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एक टीस जिगर में उठती है एक दर्द सा दिल में होता है
हम रातों को उठ कर रोतें हैं जब सारा आलम सोता है
सब जग सोये हम जागें, तारों से करें बातें
चांदनी रातें...!

तकते तकते दिन फिर जाए, आस पिया न आये रे
शाम सवेरे दर्द अनोखे उठे जिया घबराए रे
रातों ने मेरी नींद लूट ली, दिल के चैन चुराए
दुखिया आँखें ढूंढ रही हैं वही प्यार की घातें
चांदनी रातें...!

पिछले रात में हम उठ उठ कर चुपके चुपके रोए रे
सुख की नींद में मीत हमारें देश पराये सोये रे
दिल की धड़कने तुझे पुकारें आजा बालम आई बहारें
बैठ के तन्हाई में कर ले सुख दुःख की दो बातें
चांदनी रातें...!

सब जग सोये हम जागें, तारों से करें बातें
चांदनी रातें...!

~ मूशीर काज़मी

August 31, 2014

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