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Thursday, November 20, 2014

कि आज बिखरने लगा हूँ



ये क्या हुआ कि आज बिखरने लगा हूँ मैं
आहट से खामुशी के भी डरने लगा हूँ मैं

मंजिल की है खबर न किसी राह का पता
अब कैसी मुश्किलों से गुजरने लगा हूँ मैं

रहने लगा है साया मेरा मुझसे दूर दूर
ऐसा गुनाह कौन सा करने लगा हूँ मैं

जिसकी हँसी पे था मैं दिलो जान से फ़िदा
मुस्कान पर भी उसकी, सिहरने लगा हूँ मैं

आईना मेरा मुझसे चुराने लगा नजर
क्या आख़िरी सफ़र को संवरने लगा हूँ मैं

~ नामालूम 

   Jun 25, 2014

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