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Friday, November 21, 2014

ख़्वाब इस आँखों से अब कोई



ख़्वाब इस आँखों से अब कोई चुरा कर ले जाये
क़ब्र के सूखे हुये फूल उठा कर ले जाये

मुंतज़िर फूल में ख़ुश्बू की तरह हूँ कबसे
कोई झोंकें की तरह आये उड़ा कर ले जाये
*मुंतज़िर=इंतज़ार में

ये भी पानी है मगर आँखों का ऐसा पानी
जो हथेली पे रची मेहंदी उड़ा कर ले जाये

मैं मोहब्बत से महकता हुआ ख़त हूँ मुझको
ज़िन्दगी अपनी किताबों में दबा कर ले जाये

ख़ाक इंसाफ़ है नाबीना बुतों के आगे
रात थाली में चिराग़ों को सजा कर ले जाये
*नाबीना=अन्धा

~ बशीर बद्र

  Dec 20, 2014

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