ये जब्र भी देखा है तारीख की नज़रों नें,
लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पायी ।
*जब्र= जोर-जबरदस्ती
~ मुज़फ्फर रज्मी
Nov 4, 2013 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पायी ।
*जब्र= जोर-जबरदस्ती
~ मुज़फ्फर रज्मी
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