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Wednesday, November 26, 2014

कहाँ गई एहसास की ख़ुशबू




कहाँ गई एहसास की ख़ुशबू, फ़ना हुए जज़्बात कहाँ
हम भी वही हैं तुम भी वही हो लेकिन अब वो बात कहाँ

मौसम ने अँगड़ाई ली तो मुस्काए कुछ फूल मगर
मन में धूम मचा दे अब वो रंगों की बरसात कहाँ

मुमकिन हो तो खिड़की से ही रोशन कर लो घर-आँगन
इतने चाँद सितारे लेकर फिर आएगी रात कहाँ

ख़्वाबों की तस्वीरों में अब आओ भर लें रंग नया
चाँद, समंदर, कश्ती, हम-तुम,ये जलवे इक साथ कहाँ

इक चेहरे का अक्स सभी में ढूँढ रहा हूँ बरसों से
लाखों चेहरे देखे लेकिन उस चेहरे-सी बात कहाँ

चमक-दमक में डूब गए हैं प्यार-वफ़ा के असली रंग
अगले दौर के लोगों में अब पहले जैसी बात कहाँ

~ देवमणि पाण्डेय

   June 24, 2013

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