नज़रिए हो गये छोटे हमारे,
मगर, बौने बड़े दिखने लगे है ,
चले इंसानियत की राह पर जो
मुसीबत में पड़े दिखने लगे है !
समय के पृष्ठ पर हमने लिखी थी
छबीले मोर पंखों से ऋचाए,
सुनी थी इस दिशा में उस दिशा तक
अंधेरो ने मशालों की कथाएँ,
हुए है बोल अब दो कौड़ियों के,
कलम हीरे - जड़े दिखने लगे है !
हुआ होगा कही ईमान मँहगा,
यहाँ वह बिक रहा नीची दरों पर,
गिरा है मोल सच्चे आदमी का,
टिका बाज़ार कच्चे शेयरों पर,
पुराने दर्द से भीगी नज़र को
सुहाने आँकड़े दिखने लगे हैं !
हमारा घर अजायब घर बना है
सपोले आस्तीनों में पले है
हमारे देश हैं खूनों नहाया
यहाँ के लोग नाखूनों फले हैं
कहीं वाचाल मुर्दे चल रहे है
कही ज़िंदा गड़े दिखने लगे है !
मुनादी द्वारका ने यह सुना दी-
कि खाली हाथ लौटेगा सुदामा
सुबह का सूर्य भी रथ से उतरकर
सुनेगा जुगनुओं का हुक्मनामा
चरण जिनके सितारों ने छुए वे
कतारों में खड़े दिखने लगे हैं !
यहाँ पर मज़हबी अंधे कुए हैं
यहाँ मेले लगे है भ्रांतियों के,
लगी है क्रूर ग्रहवाली दशा भी,
मुहूरत क्या निकालें क्रांतियों के
सगुन कैसे विचारें मंज़िलो के
हमें सूने घड़े दिखने लगे है !
~ सोम ठाकुर
Som Thakur ji reciting this poem;
http://yourlisten.com/channel/content/ 16994304/Nazariye_ho_gaye_chhote_hamare
June 23, 2013
मगर, बौने बड़े दिखने लगे है ,
चले इंसानियत की राह पर जो
मुसीबत में पड़े दिखने लगे है !
समय के पृष्ठ पर हमने लिखी थी
छबीले मोर पंखों से ऋचाए,
सुनी थी इस दिशा में उस दिशा तक
अंधेरो ने मशालों की कथाएँ,
हुए है बोल अब दो कौड़ियों के,
कलम हीरे - जड़े दिखने लगे है !
हुआ होगा कही ईमान मँहगा,
यहाँ वह बिक रहा नीची दरों पर,
गिरा है मोल सच्चे आदमी का,
टिका बाज़ार कच्चे शेयरों पर,
पुराने दर्द से भीगी नज़र को
सुहाने आँकड़े दिखने लगे हैं !
हमारा घर अजायब घर बना है
सपोले आस्तीनों में पले है
हमारे देश हैं खूनों नहाया
यहाँ के लोग नाखूनों फले हैं
कहीं वाचाल मुर्दे चल रहे है
कही ज़िंदा गड़े दिखने लगे है !
मुनादी द्वारका ने यह सुना दी-
कि खाली हाथ लौटेगा सुदामा
सुबह का सूर्य भी रथ से उतरकर
सुनेगा जुगनुओं का हुक्मनामा
चरण जिनके सितारों ने छुए वे
कतारों में खड़े दिखने लगे हैं !
यहाँ पर मज़हबी अंधे कुए हैं
यहाँ मेले लगे है भ्रांतियों के,
लगी है क्रूर ग्रहवाली दशा भी,
मुहूरत क्या निकालें क्रांतियों के
सगुन कैसे विचारें मंज़िलो के
हमें सूने घड़े दिखने लगे है !
~ सोम ठाकुर
Som Thakur ji reciting this poem;
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June 23, 2013
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