लेखक के नाम के बगैर कोई भी रचना अधूरी लगती है। फिर भी, इन पंक्तियों में भाव, समझने वाले के मर्म के ऊपर हैं। आनंद लें ।
कहा था न कि यूं सोते हुये
मत छोड़ कर जाना
मुझे बेशक जगा देना
बता देना,
तुम्हें रास्ता बदलना है
मेरी हद से निकलना है,
तुम्हें किस बात का डर था
कि मैं जाने नहीं देता,
कहीं पर क़ैद कर लेता?
अरे पागल, मोहब्बत की तबीयत में,
ज़बरदस्ती नहीं होती
जिसे रास्ता बदलना हो
उसे रास्ता बदलने से,
जिसे हद से निकलना हो
उसे हद से निकलने से,
न कोई रोक पाया है, न कोई रोक पाएगा
तुम्हें किस बात का डर था?
मुझे बेशक जगा देती
मैं तुमको देख ही लेता
तुम्हें कोई दुआ देता
कम से कम यूं तो न होता
मेरे हमदम, मगर ये भी हक़ीक़त है
तुम्हारे बाद खोने के लिए
नहीं कुछ और है बाक़ी
मगर फिर भी,
अब कुछ और खोने से डरता हूँ
कहा था न, यूं छोड़ कर मत जाना
मैं अब सोने से भी डरता हूँ....!!!!
~ नामालूम
♥♥♥
May 30, 2013 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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