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Wednesday, November 26, 2014

क़द-ओ-गेसू में



क़द-ओ-गेसू में क़ैस-ओ-कोहकन की आज़माइश है
जहां हम हैं वहां दार-ओ-रसन की आज़माइश है
*क़द-ओ-गेसू=प्रेमिका के सौन्दर्य के दो प्रतिमान - लम्बाई और केश; क़ैस-ओ-कोहकन=मजनूं और फ़रहाद; दार-ओ-रसन=सूली (यानि कि माशूक का क़द) और फांसी का फ़न्दा (यानि कि माशूक की केशराशि ♥)

नहीं कुछ सुब्ह-ओ-ज़ुन्नार के फ़न्दे में गीराई
वफ़ादारी में शैख़-ओ-बरहमन की आज़माइश है
*सुब्ह-ओ-ज़ुन्नार=तसबीह, फेरी जाने वाली माला और जनेऊ; गीराई=पकड़ या गिरफ़्त; शैख़-ओ-बरहमन: मौलवी और पंडित

रग-ओ-पै में जब उतरे ज़हर-ए-ग़म तब देखिये क्या हो
अभी तो तल्ख़ि-ए-काम-ओ-दहन की की आज़माइश है
*रग-ओ-पै=नसें और मांसपेशियां; तल्ख़ि-ए-काम-ओ-दहन: होंठ और तालु पर महसूस होने वाला कसैलापन

~ मिर्ज़ा ग़ालिब ♥

   Jun 27, 2013

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