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Wednesday, November 26, 2014

वह मंजुल मयंक में है



मैंने कभी सोचा वह मंजुल मयंक में है
देखता इसी से उसे चाव से चकोर है ।
कभी यह ज्ञात हुआ वह जलधर में है
नाचता निहार के उसी को मंजु मोर है ।
*मंजुल मयंक=मनोहर चन्द्रमा

कभी यह हुआ अनुमान वह फूल में है
दौड़कर जाता भृंग-वृंद जिस ओर है ।
कैसा अचरज है न मैं जान पाया कभी
मेरे चित्त में ही छिपा मेरा चित्त-चोर है ।
*भृंग-वृंद=भौरों का झुंड

~ गोपालशरण सिंह

   Jun 28, 2013

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