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Wednesday, November 26, 2014
जब दूब ने फैला दिये पाँव
जब जब दूब ने फैला दिये पाँव
ढूँढ़ते फिरे बरगद अपनी ही छाँव
लौट कर आ रही वनों से व्यथा
ढूंढ रहे पंछी छतों के बीच ठाँव
तुमको पचा गए महल दोमहले
हममें है पलता अभी तक वो गाँव
शहरों के शीशे समेट ले जाना
गाँव में बच्चे खेले हैं नंगे पाँव
~ अमिता तिवारी
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