काश मैं तेरे हसीन हाथ का कंगन होता
तू बड़े प्यार से, चाव से, बड़े मन के साथ
अपनी नाज़ुक सी कलाई में चढ़ाती मुझको
और बेताबी से फुरक़त के खिजाँ लम्हों में
तू किसी सोच में डूबी जो घुमाती मुझको
मैं तेरे हाथ की खुशबू से महका करता...
रात को जब भी तू नींदों के सफ़र पे जाती
मरमरीं हाथ का तकिया बनाया करती
मैं तेरे कान से लग कर कई बातें करता
तेरी जुल्फों, तेरे गाल को चूमा करता...
मुझको बेताब सा रखता तेरी चाहत का नशा
मैं तेरे जिस्म के आँगन में खनकता रहता
मैं तेरी रूह के गुलशन में महकता रहता
काश मैं तेरे हसीन हाथ का कंगन होता...
~ वसी शाह
June 22, 2013
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