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Wednesday, November 26, 2014

दो जवाँ दिलों का ग़म



दो जवाँ दिलों का ग़म दूरियाँ समझती हैं
कौन याद करता है हिचकियाँ समझती हैं।

तुम तो ख़ुद ही क़ातिल हो, तुम ये बात क्या जानो
क्यों हुआ मैं दीवाना बेड़ियाँ समझती हैं।

बाम से उतरती है जब हसीन दोशीज़ा
जिस्म की नज़ाक़त को सीढ़ियाँ समझती हैं।
*बाम=छत ; दोशीज़ा=दुल्हन

यूँ तो सैर-ए-गुलशन को कितना लोग आते हैं
फूल कौन तोड़ेगा डालियाँ समझती हैं।

जिसने कर लिया दिल में पहली बार घर ‘दानिश’
उसको मेरी आँखों की पुतलियाँ समझती हैं।

~ दानिश अलीगढ़ी

   Jul 3, 2013

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