
कहाँ ढूढ़ें नदी सा बहता हुआ दिन
वह गगन भर धूप, सेनुर और सोना
धार का दरपन, भँवर का फूल होना
हाँ किनारों से कथा कहता हुआ दिन ।
सूर्य का हर रोज़ नंगे पाँव चलना
घाटियों में हवा का कपड़े बदलना
ओस, कोहरा, घाम सब सहता हुआ दिन ।
कौन देगा मोरपंखों से लिखे छन
रेतियों पर सीप शंखों से लिखे छन
आज कच्ची भीत सा ढहता हुआ दिन ।
~ सत्यनारायन
Nov 17, 2013
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