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Saturday, November 22, 2014

कहाँ ढूढ़ें नदी सा बहता हुआ



 कहाँ ढूढ़ें नदी सा बहता हुआ दिन

वह गगन भर धूप, सेनुर और सोना
धार का दरपन, भँवर का फूल होना

हाँ किनारों से कथा कहता हुआ दिन ।

सूर्य का हर रोज़ नंगे पाँव चलना
घाटियों में हवा का कपड़े बदलना

ओस, कोहरा, घाम सब सहता हुआ दिन ।

कौन देगा मोरपंखों से लिखे छन
रेतियों पर सीप शंखों से लिखे छन

आज कच्ची भीत सा ढहता हुआ दिन ।


~ सत्यनारायन

   Nov 17, 2013

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