बात बस से निकल चली है
दिल की हालत सँभल चली है
जब जुनूँ हद से बढ़ चला है
अब तबीअ'त बहल चली है
अश्क़ ख़ूँनाब हो चले हैं
ग़म की रंगत बदल चली है
*ख़ूँनाब=लहू का रंग
या यूँ ही बुझ रही हैं शमएँ
या शबे-हिज़्र टल चली है
*शबे-हिज़्र=जुदाई की रात
लाख पैग़ाम हो गये हैं
जब सबा एक पल चली है
*सबा=प्रातः समीर
जाओ, अब सो रहो सितारो
दर्द की रात ढल चली है
~ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
Nov 20, 2014
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