वे मुसकाते फूल, नहीं
जिनको आता है मुरझाना
वे तारों के दीप, नहीं
जिनको आता है बुझ जाना।
वे नीलम के मेघ, नहीं
जिनको है घुल जाने की चाह
वह अनंत ऋतुराज, नहीं
जिसने देखी जाने की राह
वे सूने से नयन, नहीं
जिनमें बनते आंसू मोती
वह प्राणों की सेज, नहीं
जिसमें बेसुध पीड़ा सोती।
ऐसा तेरा लोक, वेदना नहीं
नहीं जिसमें अवसाद,
जलना जाना नहीं,
नहीं जिसने जाना मिटने का स्वाद।
क्या अमरों का लोक मिलेगा
तेरी करुणा का उपहार?
रहने दो हे देव! अरे
यह मेरे मिटने का अधिकार।
~ महादेवी वर्मा
Dec 18, 2014
No comments:
Post a Comment