ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते
कि बख्सा गया जिनको ज़ौक-ए-गदाई
ज़माने की फटकार सरमाया इनका
जहाँ भर की दुत्कार इनकी कमाई
न आराम शब् को न राहत सवेरे
गज़ालत में, घर नालियों में बसेरे
जो बिगड़े तो इक दुसरे से लड़ा दो
ज़रा एक रोटी का टुकड़ा दिखा दो
ये हर एक की ठोकरे खाने वाले
ये फ़ाकों से उकता के मर जाने वाले
ये मजलूम मखलूक गर सर उठाये
तो इंसां सब सरकशी भूल जाए
ये चाहे तो दुनिया को अपना बना लें
ये आकाओं के हड्डियाँ तक चबा लें
कोई इनको एहसासे-ज़िल्लत दिला दे
कोई इनकी सोई हुई दुम हिला दे
ज़ौक-ए-गदाई=भीख मांगने का शौक;
सरमाया=पूँजी; गज़ालत=गंदगी; मख़लूक़=लोग;
सरकशी=घमंड; आकाओं=मालिकों;
एहसासे-ज़िल्लत=अपमान का अहसास;
~ फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़'
June 20, 2013
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