अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी आया न करो
मुझ से बिखरे हुये गेसू नहीं देखे जाते
सुर्ख़ आँखों की क़सम, काँपती पलकों की क़सम
थर-थराते हुये आँसू नहीं देखे जाते
*आग़ोश-ए-तसव्वुर=सपनों के आलिंगन
अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी आया न करो
छूट जाने दो जो दामन-ए-वफ़ा छूट गया
क्यूँ ये लग़ज़ीदा ख़रामी, ये पशेमाँ नज़री
तुम ने तोड़ा नहीं रिश्ता-ए-दिल टूट गया
*लग़ज़ीदा ख़रामी=सोच-सोच के चलना; पशेमाँ नज़री=पछतावे से भरी निगाह
अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी आया न करो
मेरी आहों से ये रुख़सार न कुम्हला जायें
ढूँढ़ती होगी तुम्हें, रस में नहाई हुई रात
जाओ कलियाँ न कहीं सेज की मुरझा जायें
*रुख़सार=गाल
अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी आया न करो
मैं इस उजड़े हुये पहलू में बिठा लूँ न कहीं
लब-ए-शीरीं का नमक, आरिज़-ए-नमकीं की मिठास
अपने तरसे हुये होंठों में चुरा लूँ न कहीं ”
*लब-ए-शीरीं=मधुर होंठ; आरिज़-ए-नमकीं=नमकीन गाल
~ क़ैफी आज़मी
Jun 23, 2014
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