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Thursday, November 20, 2014

हर इक इंसान को इक दिन मोहब्बत


हर इक इंसान को इक दिन मोहब्बत आज़माती है
किसी से रूठ जाती है, किसी पर मुस्कुराती है
भला इंसान की तक़दीर का ये खेल है कैसा
किसी का कुछ नहीं जाता, किसी की जान जाती है

~ दिनेश रघुवंशी
   Jun 22, 2014 | e-kavya.blogspot.com 
   Submitted by: Ashok Singh

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