
रिश्तों के सब तार बह गए
हम नदिया की धार बह गए ।
अरमानों की अनगिन नावें
विश्वासों की दो पतवारें
जग जीतेंगे सोच रहे थे
ऊंची लहरों को ललकारें
सुविधाओं के भँवर जाल में
जाने कब मँझधार बह गए ।
बहुत कठिन है नैया अपनी
धारा के विपरीत चलाना
अरे..! कहाँ संभव है प्यारे
बिन डूबे मोती पा जाना
मंजिल के लघु पथ कटान में
जीवन के सब सार बह गए ।
एक लक्ष्य हो, एक नाव हो
कर्मशील हों, धैर्य अपरिमित
मंजिल उनके चरण चूमती
जो साहस से रहे समर्पित
दो नावों पर चलने वाले
करके हाहाकार बह गए ।
~ देवेन्द्र पाण्डेय
Oct 31, 2013
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