
रात भर सर्द हवा चलती रही
रात भर हमने अलाव तापा
मैंने माज़ी से कई ख़ुश्क सी शाखें काटीं
तुमने भी गुजरे हुये लम्हों के पत्ते तोड़े
मैंने जेबों से निकालीं सभी सूखीं नज़्में
तुमने भी हाथों से मुरझाये हुये ख़त खोलें
अपनी इन आंखों से मैंने कई मांजे तोड़े
और हाथों से कई बासी लकीरें फेंकी
तुमने पलकों पे नामी सूख गयी थी, सो गिरा दी|
*माज़ी=बीता हुआ
रात भर जो भी मिला उगते बदन पर हमको
काट के दाल दिया जलाते अलावों में उसे
रात भर फूँकों से हर लौ को जगाये रखा
और दो जिस्मों के ईंधन को जलाए रखा
रात भर बुझते हुए रिश्ते को तापा हमने।
~ गुलज़ार
Nov 17, 2014
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