अब कोई मज़लूम न हो, हक़ बराबर का मिले
ख्वाब सरकारी नहीं तो और क्या है दोस्तों
चल रहे भाषण महज़, औरत वहीँ की है वहीँ
सिर्फ मक्कारी नहीं तो और क्या है दोस्तों
अमन भी हो प्रेम भी हो, ज़िन्दगी खुशहाल हो
राग दरबारी नहीं तो और क्या है दोस्तों
इश्क मिटटी का भुला कर, हम शहर में आ गए
ज़िन्दगी प्यारी नहीं तो और क्या है दोस्तों
~ आनंद कुमार द्विवेदी
August 28, 2014
ख्वाब सरकारी नहीं तो और क्या है दोस्तों
चल रहे भाषण महज़, औरत वहीँ की है वहीँ
सिर्फ मक्कारी नहीं तो और क्या है दोस्तों
अमन भी हो प्रेम भी हो, ज़िन्दगी खुशहाल हो
राग दरबारी नहीं तो और क्या है दोस्तों
इश्क मिटटी का भुला कर, हम शहर में आ गए
ज़िन्दगी प्यारी नहीं तो और क्या है दोस्तों
~ आनंद कुमार द्विवेदी
August 28, 2014
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