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Saturday, November 22, 2014

छोडो ये दुनिया की बातें





छोडो ये दुनिया की बातें
आओ प्यार की बातें कर लें
खाली है मुद्दत से झोली
उसको आस उम्मीद से भर लें

आस उम्मीद न हो तो इन्सां
जीते जी ही मर जाता है
टक्कर क्या तूफ़ान से लेगा
जो इक मौज से डर जाता है
डर कर जीना मौत से बदतर
चलती फिरती ज़िंदा लाशें
सोई हुई जज़्बात की हलचल
कुचले हुए ज़हनों के सुकूँ-में

ज़हन अगर बेदार न होंगे
खौफ़ दिलों पर तारी होगा
आगाज़ ओ अंजाम ए हस्ती
मजबूरी , लाचारी होगा
इन मजबूर फ़िज़ाओं में हम
प्रीत औ' प्यार का रंग मिला दें
सहराओं और वीरानों को
सेराबी का भेद बता दें

चेहरों से हो दूर उदासी
उनवान-ए-मज़मून-ए-हस्ती
राह नई खुल जाएं सब पर
कुल दुनिया का नक्शा बदले
होश ओ ख़िरद के दीवाने भी
कायल हों दिल की अज़मत के
मुफ़लिस की नादारी में भी
अंदाज़ ए शाही पैदा हो
इश्क़ में लोच इतना आ जाए
हुस्न की महबूबी पैदा हो

माह-ए-मुहब्बत की किरणों से
रोशन अपनी रातें कर लें
छोडो ये दुनिया की बातें
आओ प्यार की बातें कर लें

~ ज़िया फ़तेहाबादी (1913-1986)

   Nov 1, 2013

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