Disable Copy Text

Saturday, November 22, 2014

आ गयी फ़स्ल-ऐ-सुकूँ

आ गयी फ़स्ल-ऐ-सुकूँ चाक गरीबाँ वालों,
सिल गए होंठ कोई ज़ख्म सिले या न सिले ,
दोस्तों बज़्म सजाओ के बहार आई है,
खिल गए ज़ख्म कोई फूल खिले या न खिले।

~ फ़ैज़

   Nov 1, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment