आ गयी फ़स्ल-ऐ-सुकूँ चाक गरीबाँ वालों,
सिल गए होंठ कोई ज़ख्म सिले या न सिले ,
दोस्तों बज़्म सजाओ के बहार आई है,
खिल गए ज़ख्म कोई फूल खिले या न खिले।
~ फ़ैज़
Nov 1, 2013 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
सिल गए होंठ कोई ज़ख्म सिले या न सिले ,
दोस्तों बज़्म सजाओ के बहार आई है,
खिल गए ज़ख्म कोई फूल खिले या न खिले।
~ फ़ैज़
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