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Wednesday, November 19, 2014

दरहम बरहम दोनों सोचें

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दरहम बरहम दोनों सोचें
मिल जुलकर हम दोनों सोचें
ज़ख़्म और मरहम दोनों सोचें
सोचें पर हम दोनों सोचें
घर जलकर राख़ हो जाएगा
जब सब कुछ ख़ाक हो जाएगा
तब सोचेंगे?
सोचो! आख़िर कब सोचेंगे?
*दरहम बरहम=अस्त-व्यस्त

ईंट और पत्थर राख़ हुए हैं
दीवार-ओ-दर ख़ाक हुए हैं
उनके बारे में कुछ सोचो
जिनके छप्पर राख हुए हैं
बे बाल-ओ-पर हो जाएंगे
जब ख़ुद बेघर हो जाएंगे
तब सोचेंगे?
सोचो!आख़िर कब सोचेंगे?

फ़ाके से मजबूर मरे हैं
मेहनतकश मज़दूर मरे हैं
अपने घर की आग में जलकर
गुमनाम और मशूहर मरे हैं
एक क़यामत दर पर होगी
मौत हमारे सर पर होगी
तब सोचेंगे?
सोचो! आख़िर कब सोचेंगे?

माँ की आहें चीख़ रही हैं
नन्हीं बाहें चीख़ रही हैं
क़ातिल अपने हमसाये हैं
सूनी राहें चीख रही हैं
रिश्ते अंधे हो जाएंगे
गूंगे बहरे हो जाएंगे
तब सोचेंगे?
सोचो! आख़िर कब सोचेंगे।

कैसी बदबू फूट रही है
पत्ती पत्ती टूट रही है
ख़ुशबू से नाराज़ हैं कांटे
गुल से ख़ुशबू रूठ रही है
ख़ुशबू रुख़्सत हो जाएगी
बाग़ में वहशत हो जाएगी
तब सोचेंगे?
सोचो! आखिर कब सोचेंगे?

टीपू के अरमान जले हैं
बापू के अहसान जले हैं
गीता और कुरआन जले हैं
हद ये है इन्सान जले हैं
हर तीरथ स्थान जलेगा
सारा हिंदुस्तान जलेगा
तब सोचेंगे?
सोचो! आख़िर कब सोचेंगे?

~ नवाज़ देवबंदी

  August 30, 2014

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