
रात आई है बलाओं से रिहाई देगी
अब न दीवार न ज़ंजीर दिखाई देगी ।
वक़्त गुज़रा है पर मौसम नहीं बदला यारो,
ऎसी गर्दिश है ज़मीं खुद भी दुहाई देगी ।
ये धुंधलका सा जो है उस को गनीमत जानो,
देखना फिर कोई सूरत न सुझाई देगी ।
दिल जो टूटेगा तो इक तरफा तमाशा होगा ,
कितने आईनों में ये शक्ल दिखाई देगी ।
साथ के घर में बड़ा शोर बरपा है 'अनवर',
कोई आयेगा तो दस्तक न सुनाई देगी ।
~ अनवर मसूद
Feb 20, 2013| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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