
तेरी खुशबु में जलना चाहता हू
मै पत्थर हू, पिघलना चाहता हू
उजालो ने दिए है जख्म ऐसे
कि जिस्मो-जा बदलना चाहता हू
मै अपनी प्यास का सहरा हू लेकिन
समंदर बन के चलना चाहता हू
सहरा=रेगिस्तान
मेरे चेहरे पे खालों-खंद है किस के
मै आईना बदलना चाहता हू
खालो-खंद=नयन-शिख
शिकस्ता आयनों का अक्स हू मै
चट्टानों को कुचलना चाहता हू
शिकस्ता=टूटे हुए
खयालो-ख्वाब के सब घर जला कर
बदन की सम्त चलना चाहता हू
सम्त=तरफ
अगर सूरज नही हू मै, तो फिर क्यों
अंधेरो से निकलना चाहता हू मै
~ जाज़िब कुरैशी
Dec 16, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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