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Tuesday, March 31, 2015

तेरी खुशबु में जलना चाहता हू



तेरी खुशबु में जलना चाहता हू
मै पत्थर हू, पिघलना चाहता हू

उजालो ने दिए है जख्म ऐसे
कि जिस्मो-जा बदलना चाहता हू

मै अपनी प्यास का सहरा हू लेकिन
समंदर बन के चलना चाहता हू
सहरा=रेगिस्तान

मेरे चेहरे पे खालों-खंद है किस के
मै आईना बदलना चाहता हू
खालो-खंद=नयन-शिख

शिकस्ता आयनों का अक्स हू मै
चट्टानों को कुचलना चाहता हू
शिकस्ता=टूटे हुए

खयालो-ख्वाब के सब घर जला कर
बदन की सम्त चलना चाहता हू
सम्त=तरफ

अगर सूरज नही हू मै, तो फिर क्यों
अंधेरो से निकलना चाहता हू मै

~ जाज़िब कुरैशी


   Dec 16, 2012| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

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