
तमाम विवशताओं से बंधा
तुम्हारा प्यार,
मेरे लिए सिर्फ एक झीनी सी चादर
जिसे ओढ़ कर न तो मैं अपनी लाज
पूर्णतः ढकने में समर्थ हूँ,
और न ही पूर्णतया निर्लज्ज हो
उसे त्यागने में ही सफल !
~ 'प्रमिला' ('कहाँ हूँ मैं'' संकलन से)
Dec 22, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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