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Monday, March 30, 2015

तुझको पराई क्या पड़ी, अपनी निबेड़ तू



 बेटा है तू शरीफ का, मत मुस्कुरा के चल,
टाँगें हैं तेरी बेंत-सी, इनको टिका के चल।
सड़कों की भीड़-भाड़ में, कोहनी बचा के चल
कालिज के कार्टून, तू नजरें झुका के चल।
लड़की मिले जो राह में, उसको न छेड़ तू,
तुझको पराई क्या पड़ी, अपनी निबेड़ तू।

लाला को अपनी ऊँची हवेली से प्यार है,
माली को अपनी शोख चमेली से प्यार है।
कुढ़ता है क्यों, गुरु को जो चेली से प्यार है,
तुझको भी तो बहन की सहेली से प्यार है।
जो तेरे मन में चोर है उसको खदेड़ तू,
तुझको पराई क्या पड़ी, अपनी निबेड़ तू।

ओढ़े था तन पे शाल सुदामा, फटा हुआ,
पहने है कोट कल्लू का मामा फटा हुआ।
मत हँस किसी को देख के जामा फटा हुआ,
तेरा भी तो है, देख, पजामा फटा हुआ।
मत दूसरों के सूट की बखिया उधेड़ तू,
तुझको पराई क्या पड़ी है, अपनी निबेड़ तू।

रहता है हर घड़ी जो हसीनों की ताक में,
करता है हाय-हाय, जो उनकी फिराक में।
कहता है लड़कियों को जो लैला, मजाक में,
जिसकी वजह से दम है मुहल्ले की नाक में।
अपने तो उस सपूत की चमड़ी उधेड़ तू,
तुझको पराई क्या पड़ी, अपनी निबेड़ तू।

तुकबन्दियों पे, यार, न इतना तू नाज कर,
घर में इकट्ठे आज ही ‘म्यूजिक’ के साज कर।
बुद्धू पड़ोसियों का न बिलकुल लिहाज कर,
छत पर तमाम रात तू डट के रियाज कर।
तबला बजाये बीवी तो सारंगी छेड़ तू,
तुझको पराई क्या पड़ी, अपनी निबेड़ तू।

बीवी से और तलाक ! मत ऐसा गुनाह कर,
फेरे लिये हैं सात, मत इसको तबाह कर।
कम्मो से तू न खेल, न निब्बो की चाह कर,
धन्नो यही है तेरी, तू इसी से निबाह कर।
अनपढ़ समझ के इसको न घर से खदेड़ तू,
तुझको पराई क्या पड़ी, अपनी निबेड़ तू।

~ अल्हड़ बीकानेरी


   Jan 28, 2013| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

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