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Tuesday, March 31, 2015

ख़्वाब मरते नहीं




ख़्वाब मरते नहीं
ख़्वाब दिल हैं न आँखें न साँसें कि जो
रेज़ा-रेज़ा हुए तो बिखर जाएँगे (रेज़ा-रेज़ा=कण-कण)
जिस्म की मौत से ये भी मर जाएँगे

ख़्वाब मरते नहीं
ख़्वाब तो रोशनी हैं नवा हैं हवा हैं (नवा=आवाज़)
जो काले पहाड़ों से रुकते नहीं
ज़ुल्म के दोज़खों से भी फुकते नहीं

रोशनी और नवा के अलम
मक़्तलों में पहुँचकर भी झुकते नहीं (मक़्तलों=वधस्थल)
ख़्वाब तो हर्फ़ हैं (हर्फ़=अक्षर)
ख़्वाब तो नूर हैं (नूर=प्रकाश)
ख़्वाब सुक़रात* हैं
ख़्वाब मंसूर* हैं.

*सुक़रात=जिन्हें सच कहने के लिए ज़हर का प्याला पीना पड़ा था
*मंसूर=एक वली(महात्मा) जिन्होंने ‘अनलहक़’ (मैं ईश्वर हूँ) कहा था और इसके लिए उनकी गर्दन काट डाली गई थी

~ अहमद फ़राज़


  Dec 31, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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