
उफक़ के दरीचे से किरनों ने झांका
फ़ज़ा तन गई, रास्ते मुस्कुराये
उफक़=क्षितिज, फ़ज़ा=वातावरण
सिमटने लगी नर्म कुहरे की चादर
जवां शाख़सारों ने घूंघट उठाये
शाख़सारों=पेंड की शाखाएँ
परिन्दों की आवाज़ से खेत चौंके
पुरअसरार लै में रहट गुनगुनाये
पुरअसरार= रहस्यपूर्ण
हसीं शबनम-आलूद पगडंडियों से
लिपटने लगे-सब्ज़ पेड़ों के साये
शबनम-आलूद=ओस-भरी
वो दूर एक टीले पे आंचल सा झलका
तसव्वुर में लाखों दिये झिलमिलाये
तसव्वुर=कल्पना
~ साहिर लुधियानवी
Jan 1, 2013| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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