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Tuesday, March 31, 2015

बाग में कचनार की बातें करें



आओ बैठे बाग में कचनार की बातें करें,
दर्द की चादर बुनें, दो प्यार की बातें करें।

बातें तब की भी करें जब तुम हमारे साथ थे,
डूबती थी नाव फिर भी हाथ में ये हाथ थे,
आँसुओं की धार ले, मँझधार की बातें करें।

देख नंगे पाँव काँटें खुद महावर रच गए,
हाथों के छाले गए और मेंहदी से सज गए,
चल फसल की कब्र पर शृंगार की बातें करें,

इन दरख्तों से उतरकर चाँदनी आती नहीं,
लालटेनों से लिपटती धूप की बाती नहीं,
घुप अँधेरा छा रहा अंगार की बातें करें।

हाथों में थामे मशालें और अँधेरा है घना,
लुट रहीं हैं डोलियाँ औ’ लुट रहा है बचपना,
दोष किस्मत का नहीं, कहार की बातें करें।

मेघ चलकर आए अबतक मेरे खेतों में कई,
प्यासी मिट्टी में है जलते पाँव उनके सुरमई,
शामियाने में खड़ी सरकार की बातें करें।

दोनों आँखों बीच दूरी तो सदा कायम रही,
ढलते आँसू में मिलन की आरजू हरदम रही,
दर्द के रिश्तों से हट अभिसार की बातें करें।

साहिलों पे आग थी, धारा नदी की बँट गई,
जो दिलों में बह रही थी वो नदी ही फट गई,
चुस्कियाँ ले चाय की, बेकार की बातें करें।

~ अमित कुलश्रेष्ठ


  Jan 10, 2013| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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