
उनकी ये जिद कि वो इंसान न होंगे, हरगिज़
मुझको ये फ़िक्र, कहीं मैं न फ़रिश्ता हो जाऊं
भूल बैठा हूँ तेरी याद में रफ़्तार अपनी
मुझको छू दे कि मैं बहता हुआ झरना हो जाऊं
बंद कमरे में तेरी याद की खुशबू लेकर
एक झोंका भी जो आ जाय तो ताज़ा हो जाऊं
~ सत्य प्रकाश शर्मा
Dec 19, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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