
लायी हयात, आये, क़ज़ा ले चली, चले
अपनी ख़ुशी न आये, न अपनी ख़ुशी चले
हयात=ज़िन्दगी, क़ज़ा=मौत
बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे
पर क्या करें जो काम न बे-दिल्लगी चले
कम होंगे इस बिसात पे हम जैसे बद-क़िमार
जो चाल हम चले सो निहायत बुरी चले
बिसात=(जुए की) बाजी, बद-क़िमार=कच्चे जुआरी
हो उम्रे-ख़िज़्र तो भी कहेंगे ब-वक़्ते-मर्ग
हम क्या रहे यहाँ अभी आये अभी चले
उम्रे-ख़िज़्र=कभी न मरने वाला, ब-वक़्ते-मर्ग=मरते समय
दुनिया ने किसका राहे-फ़ना में दिया है साथ
तुम भी चले चलो युँ ही जब तक चली चले
नाज़ाँ न हो ख़िरद पे जो होना है वो ही हो
दानिश तेरी न कुछ मेरी दानिशवरी चले
नाज़ाँ=अभिमानी,घमंडी, ख़िरद=अक्ल,बुद्धि दानिश=समझदार
जा कि हवा-ए-शौक़ में हैं इस चमन से 'ज़ौक़'
अपनी बला से बादे-सबा अब कहीं चले
हवा-ए-शौक़=प्रेम की हवा, बादे-सबा= सुबह की ठंधी पवन
~ मोहम्मद इब्राहिम 'ज़ौक़'
Dec 23, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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