
गणतंत्र दिवस पर सभी देशवासियोँ को बधाई ।
इस सदन में मैं अकेला ही दिया हूँ
मत बुझाओ, जब मिलेगी रोशनी मुझसे मिलेगी!
पाँव तो मेरे थकन ने छील डाले
अब विचारों के सहारे चल रहा हूँ
ऑंसुओं से जन्म दे-देकर हँसी को
एक मंदिर के दिए-सा जल रहा हूँ
मैं जहाँ धर दूँ क़दम वह राजपथ है
मत मिटाओ, पाँव मेरे देखकर दुनिया चलेगी!
बेबसी, मेरे अधर इतने न खोलो
जो कि अपना मोल बतलाता फिरूँ मैं
इस क़दर नफ़रत न बरसाओ नयन से
प्यार को हर गाँव दफ़नाता फिरूँ मैं
एक अंगारा गरम मैं ही बचा हूँ
मत बुझाओ, जब जलेगी आरती मुझसे जलेगी!
जी रहे हो जिस कला का नाम लेकर
कुछ पता भी है कि वह कैसे बची है
सभ्यता की जिस अटारी पर खड़े हो
वह हमीं बदनाम लोगों ने रची है
मैं बहारों का अकेला वंशधर हूँ
मत सुखाओ, मैं खिलूंगा तब नई बग़िया खिलेगी!
शाम ने सबके मुखों पर रात मल दी
मैं जला हूँ तो सुबह लाकर बुझूंगा
ज़िन्दगी सारी गुनाहों में बिताकर
जब मरूंगा, देवता बनकर पुजूंगा
ऑंसुओं को देखकर, मेरी हँसी तुम
मत उड़ाओ, मैं न रोऊँ तो शिला कैसे गलेगी!
~ रामावतार त्यागी
Jan 26, 2013| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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