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Monday, March 30, 2015

एक स्वर मेरा मिला लो।



वंदना के इन स्वरों में एक स्वर मेरा मिला लो।

राग में जब मत्त झूलो
तो कभी माँ को न भूलो
अर्चना के रत्नकण में एक कण मेरा मिला लो।

जब हृदय का तार बोले
शृंखला के बंद खोले
हों जहाँ बलि शीश अगणित एक शिर मेरा मिला लो।

लोभ में न त्रस्त होवो ,
भीती से न त्रस्त होवो
साधना आरूढ़ पग में एक पग मेरा मिला लो ,

भोग में अनुरक्ति छोडो ,
योग उन्मुख वृत्ति मोड़ो
प्रभु समर्पित इन मनों में एक मन मेरा मिला लो,

हर दुखी की पीड हरने ,
या पतन को दूर करने
श्रेष्ठ सेवा रत करों में एक कर मेरा मिला लो

जब हृदय का तार बोले
श्रृंखला के बंध खोले
हो जहाँ बल शीश अगणित एक सर मेरा मिला लो,

~ सोहनलाल द्विवेदी


   Feb 21, 2013| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

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