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Monday, March 30, 2015

भूली-बिसरी यादों को

भूली-बिसरी यादों को लिपटाए हुए हूँ
टूटा जाल समुंदर पर फैलाए हुए हूँ

वहशत करने से भी दिल बेज़ार हुआ है
दश्त समुंदर आँचल में सिमटाए हुए हूँ

वो ख़ुशबू बन कर आए तो बे-शक आए
मैं भी दस्त--सबा से हाथ मिलाए हुए हूँ

टूटे-फूटे लफ़्ज़ों के कुछ रंग घुले थे
उन की मेहंदी आज तलक भी रचाए हुए हूँ

जिन बातों को सुनना तक बार--ख़ातिर था
आज उन्हीं बातों से दिल बहलाए हुए हूँ!

~ ज़ेहरा निगाह

   Feb 16, 2013| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

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