
कोई धड़कन
न कोई चाप
न संचल (हलचल?)
न कोई मौज
न हलचल
न किसी साँस की गर्मी
न बदन
ऐसे सन्नाटे में इक आध तो पत्ता खड़के
कोई पिघला हुआ मोती
कोई आँसू
कोई दिल
कुछ भी नहीं
कितनी सुनसान है ये राहगुज़र
कोई रुखसार तो चमके, कोई बिजली तो गिरे ।
~ मख़्दूम मोहिउद्दीन
न कोई चाप
न संचल (हलचल?)
न कोई मौज
न हलचल
न किसी साँस की गर्मी
न बदन
ऐसे सन्नाटे में इक आध तो पत्ता खड़के
कोई पिघला हुआ मोती
कोई आँसू
कोई दिल
कुछ भी नहीं
कितनी सुनसान है ये राहगुज़र
कोई रुखसार तो चमके, कोई बिजली तो गिरे ।
~ मख़्दूम मोहिउद्दीन
Submitted by: Ashok Singh
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