
क्या बताऊं कैसे ख़ुद को दर-ब-दर मैंने किया,
उम्र भर किस-किस के हिस्से का सफ़र मैंने किया ।
तू तो नफ़रत भी न कर पाएगा इतनी शिद्दत के साथ,
जिस बला का प्यार तुझसे बे-ख़बर मैंने किया ।
*शिद्दत=अति
कैसे बच्चों को बताऊं रास्तों के पेचो-ख़म2,
ज़िन्दगी भर तो किताबों का सफ़र मैंने किया ।
*पेचो-ख़म=घुमाव- फिराव
शोहरतों की नज़्र3 कर दी शेर की मासूमियत,
इस दिये की रोशनी को दर-ब-दर मैंने किया ।
*नज़्र=भेंट, उपहार
चंद जज़्बातों से रिश्तों को बचाने को ‘वसीम‘,
कैसा-कैसा जब्र अपने आप पर मैंने किया ।
*जब्र=ज़ोर-ज़बर्दस्ती
~ वसीम बरेलवी
Feb 28, 2013| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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