
किसकी आवाज़ के शोले की लपक उठती है
किसकी खुशबू-ए-बदन उड़ती है
क्यों फिज़ा बदली हुयी लगती है
क्या कोई और भी है मेरे सिवा
फैले हुये सेहरा में
ज़ीस्त* जिसके लिए तनहाई है
जुस्तजू* जिसको हक़ीक़त की यहाँ लाई है
क्यों फिज़ा बदली हुयी लगती है
क्या कोई और भी है मेरे सिवा
फैले हुये सेहरा में ?
*ज़ीस्त=जीवन, जुस्तजू=तलाश
~ 'शहरयार'
Feb 4, 2013| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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