
मुक़द्दर के ऐसे इशारे हुए
न हम उनके, न वो हमारे हुए।
चरागाँ, शमा, चाँद-तारे हुए
जुदा हमसे सारे के सारे हुए।
चले साथ, फिर भी कभी न मिले
गो दोनों नदी के किनारे हुए।
जिन्हें देखकर भूल जाएँ उसे
कहाँ इतने रंगीं नज़ारे हुए।
तेरी याद के जुगनुओं की क़सम
ये बारिश के छींटे शरारे हुए।
शहद जैसे रिश्ते थे कल तक जहाँ
वहाँ अब तो चेहरे भी खारे हुए।
~ दिनेश ठाकुर
Mar 2, 2013| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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