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Tuesday, March 31, 2015

चाँद अपना सफर खत्म करता रहा



चाँद अपना सफर खत्म करता रहा
शमा जलती रही रात ढलती रही
दिल में यादों के नश्तर से टूटा किये
एक तमन्ना कलेजा मसलती रही

ख्वाब पलकों से गिर कर फना हो गए
दो कदम चल के तुम भी जुदा हो गए
मेरी हारी थकी आँख से रात दिन
एक नदी आँसुओं की उबलती रही

सुबह मांगी तो गम का अँधेरा मिला
मुझ को रोता सिसकता सवेरा मिला
मैं उजालों की नाकाम हसरत लिए
उम्र भर मोम बन कर पिघलती रही

~ ज़फ़र गोरखपुरी


   Jan 23, 2013| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

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