चाँद अपना सफर खत्म करता रहा
शमा जलती रही रात ढलती रही
दिल में यादों के नश्तर से टूटा किये
एक तमन्ना कलेजा मसलती रही
ख्वाब पलकों से गिर कर फना हो गए
दो कदम चल के तुम भी जुदा हो गए
मेरी हारी थकी आँख से रात दिन
एक नदी आँसुओं की उबलती रही
सुबह मांगी तो गम का अँधेरा मिला
मुझ को रोता सिसकता सवेरा मिला
मैं उजालों की नाकाम हसरत लिए
उम्र भर मोम बन कर पिघलती रही
~ ज़फ़र गोरखपुरी
Jan 23, 2013| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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