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Tuesday, March 31, 2015

नज़म उलझी हुई है सीने में



नज़म उलझी हुई है सीने में
मिस्रें अटके हुए हैं होंठों पर
उड़ते फिरते हैं तितलियों की तरह
लफ्ज़ कागज़ पे बैठे ही नहीं

कब से बैठा हूँ मैं जानम
सादे कागज़ पे लिखके नाम तेरा

बस तेरा नाम ही मुकम्मल है
इससे बेहतर भी नज़म क्या होगी

~ गुलज़ार


  Jan 14, 2013| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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