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Monday, March 30, 2015

दूधिया उजालों में शत्रु की पहचान कहाँ



दूधिया उजालों में शत्रु की पहचान कहाँ
इस लिए अब कुछ अँधेरों से उलझना चाहिए

बीती बातें आगे आतीं, आगे वाली बीततीं
दोनों की मध्यस्थता से पार जाना चाहिए

कलुष मन का हो गया जीवन की परछाईं में
अतः अब चंदा को धरती पर ही आना चाहिए

इस जहां में हैं सभी स्वार्थों से प्रेरित हमसफर
इस जहां को छोड़ कर, इक घर बनाना चाहिए

हम-सफर और हम-नवाँ, गुमनाम हैं गुमराह हैं
खुद को दे अब आसरा मंजिल पे बढ़ना चाहिए

सारे सम्बन्धों की चादर इतनी मैली हो गई
इससे पाकर मुक्ति अब निर्बंध जीना चाहिए

~ प्रमिला सिंह


   Feb 3, 2013| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

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