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Tuesday, March 31, 2015

नींद के पाँव पे पत्थर बन के




नींद के पाँव पे पत्थर बन के आते है ख्वाब
जख्म देते है उन्हें और टूटते जाते है ख्वाब

आप चाहे तो हमारी पुतलियो से पूछ लों
हमने यादो की रुई से रात भर काते है ख्वाब

नर्म चेहरे और उन पर सख्त चोटों के निशान
सोचिए इनके सिवा अब और क्या पाते है ख्वाब

बंद सीपी में छुपे अनमोल मोती की तरह
अपने अन्दर की चमक खुद ढूंढ़ कर लाते है ख्वाब

नींद में चलने का इनको रोग है लेकिन कुवर
नींद के बाहर भी अक्सर मुझसे टकराते है ख्वाब


~ कुँअर बेचैन 

  Dec 10, 2012 | e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh
 


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