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Tuesday, March 31, 2015

अशआर मेरे यूं तो ज़माने के लिए हैं



अश'आर मेरे यूं तो ज़माने के लिए हैं
कुछ शेअर फ़क़त उनको सुनाने के लिए हैं

अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं

आंखों में जो भर लोगे तो कांटो से चुभेंगे
ये ख्वाब तो पलकों पे सजाने के लिए हैं

देखूं तेरे हाथों को तो लगता है तेरे हाथ
मंदिर में फ़़क्त दीप जलाने के लिए हैं

सोचो तो बड़ी चीज़ है तहज़ीब बदन की
वरना तो बदन आग बुझाने के लिए हैं

ये इल्म का सौदा, ये रिसाले, ये किताबें
इक शख्स की यादों को भुलाने के लिए हैं

~ जाँ निसार अख़्तर


   Jan 21, 2013| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh 


http://www.youtube.com/watch?v=d-Jx8PXxXH0

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