
यूँ चुप रहना ठीक नहीं कोई मीठी बात करो
मोर चकोर पपीहा कोयल सब को मात करो
सावन तो मन बगिया से बिन बरसे बीत गया
रस में डूबे नग़्मे की अब तुम बरसात करो
हिज्र की इक लम्बी मंज़िल को जानेवाला हूँ
अपनी यादों के कुछ साये मेरे साथ करो
*हिज्र=विदाई, जुदाई
मैं किरनों की कलियाँ चुनकर सेज बना लूँगा
तुम मुखड़े का चाँद जलाओ रौशन रात करो
प्यार बुरी शय नहीं है लेकिन फिर भी यार "क़तील"
गली-गली तक़सीम न तुम अपने जज़बात करो
*तक़सीम=बाँटने की क्रिया या भाव
~ क़तील शिफ़ाई
Jan 13, 2013| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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