
सुन ली जो ख़ुदा ने वो दुआ तुम तो नहीं हो
दरवाज़े पे दस्तक की सदा, तुम तो नहीं हो
सिमटी हुई शर्माई हुई रात की रानी
सोई हुई कलियों की हया, तुम तो नहीं हो
महसूस किया तुम को तो गीली हुई पलकें
भीगे हुये मौसम की अदा, तुम तो नहीं हो
इन अजनबी राहों में नहीं कोई भी मेरा
किस ने मुझे यूँ अपना कहा, तुम तो नहीं हो
~ बशीर बद्र
Feb 14, 2013| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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